परिवर्तन को  मानसिक रूप से स्वीकारा जाना अति आवश्यक है: डॉ सुधीर सक्सेना

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Tathaastu Times Desk

आज के समय में मानसिक बीमारियां बढ़ती जा रही है | जीवन बहुत ही तनाव पूर्ण’हो गया है | इस विषय को लेकर हमने डॉ सुधीर सक्सेना से बातचीत की | डॉ सक्सेना एक रिटायर्ड बैंक ऑफिसर है तथा उन्होंने कई वर्षों तक मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में अध्यापन भी किया है | डॉ सक्सेना को पब्लिक रिलेशन्स में महारत हासिल है इन दिनों वे लेखन, निर्देशन तथा अभिनय में अपने हाथ अजमा रहे है तथा अपने रिटायरमेंट का लुत्फ़ ले रहे है | तो आईये जानते है डॉ सक्सेना के शब्दों में मानसिक तनाव तथा उसके इलाज के बारे में:

Tathaastu Times Desk:  आज के परिवेश में लोगो में मानसिक तनाव, डिप्रेशन और दूसरी मानसिक समस्याएं आम देखने में आ रही है, आप के विचार में इन बढ़ती मानसिक समस्यायों का मूल कारण क्या है?

डॉ सक्सेना: आज के परिवेश में डिप्रेशन या मानसिक तनाव वाकई में ही एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है डिप्रेशन किसी को कभी भी हो सकता है और यह जीवन में कई परेशानियों को जन्म दे सकता है जहाँ तक डिप्रेशन के मूल कारण का सवाल है तो मै ये बताना चाहूंगा कि जब कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी ऐसे दौर से गुजर रहा हो जब परिस्थितियां अनुकूल न हो , परिवार, कार्यस्थल या स्कूल अथवा कॉलेज में उत्पीड़न हो रहा हो या कोई दुर्व्यवहार किया जा रहा हो तो अंदर ही अंदर एक हीन  भावना एवं असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है आजकल हम देख रहे है समाज में एकल परिवार बढ़ रहे है जहाँ दोनों अभिभावक नौकरी करते है तथा परिवार के पास एक दुसरे के साथ बिताने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और परिवार के सदस्यों के बीच संवादहीनता की वजह से कोई भी अपनी समस्या को एक दुसरे के साथ शेयर नहीं कर पाता | ऐसे माहौल में लोग हीनता और असुरक्षा की भावना को किसी के साथ बाँट नहीं सकते | अतः अंदर ही अंदर यह भावना बढ़ती जाती है जो कि आगे जाकर मानसिक तनाव या डिप्रेशन का कारण बनती है |

Tathaastu Times Desk:  आम देखा जाता है कि आजकल लोग अपने जीवन में संतुष्ट नहीं है उन्हें अधिक चाहिए, आपको क्या लगता है क्या अधिक की भूख होना अच्छी बात है? या फिर लोगो को जो मिल रहा है उसमे संतुष्ट रहना चाहिए | क्या ये अधिक की भूख तो कहीं न कहीं मानसिक तनाव का कारण नहीं?

डॉ सक्सेना: देखिये अधिक की चाह करना गलत नहीं है | हर व्यक्ति को तरक्की करने की चाह होती है परन्तु मेरा ये मानना है कि व्यक्ति को जो मिल रहा है उसमे संतुष्ट रहना चाहिए तथा साथ ही साथ सतत प्रयास भी करने चाहिए | कभी भी अपनी तुलना उस व्यक्ति से नहीं करनी चाहिए जिसके पास आपसे अधिक है वरन उस व्यक्ति की तरफ देखना चाहिए जिसके पास आपसे कम है फिर भी वो अपना जीवन ख़ुशी से व्यतीत कर रहा है | जब आप अपने से ऊपर वालों को देखते है तो कहीं न कहीं आपके अंदर हीन भावना पनपने लगती है और यही हीन भावना बढ़ते बढ़ते मानसिक तनाव में बदल जाती है |

Tathaastu Times Desk:   हमारा समाज बदल रहा है इसमें खुलापन आ रहा है आपके विचार से इस बदलाव का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है?

डॉ सक्सेना: परिवर्तन प्रकृति का नियम है और वक़्त के साथ समाज में परिवर्तन तो आना ही है उस परिवर्तन को  मानसिक रूप से स्वीकारा जाना अति आवश्यक है आज इंटरनेट के ज़माने में पश्चिमी सभ्यता हमारे समाज में खुलेपन को बढ़ावा दे रही है | परन्तु जो हमारी मान्यताये है उसके होते समाज ऊपरी तौर पर तो खुलेपन को स्वीकार कर रहा है किन्तु मानसिक रूप से खुलापन स्वीकार्य नहीं है आज के दौर में विदेशों की देखा देखी हमारे यहाँ लिव इन की शुरुआत हो चुकी है परन्तु किसी वजह से वह यदि असफल हो जाता है तो लोग इसे मानसिक रूप से अपनी हार मान लेते है ये सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण है ऐसे कई और मुद्दे हो सकते है मेरे विचार से हमारा समाज अभी ऐसे बदलावों के लिए तैयार नहीं है और ये खुलापन मानसिक तनावों के लिए जिम्मेदार है

Tathaastu Times Desk:   पुरानी परम्पराएं टूट रही है नयी धारणाये बन रही है लेकिन कुछ लोग समाज में आ रहे बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे | कैसे लोग इन बदलावों के साथ सामजस्य बिठाये ताकि नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में टकराव न हो |

डॉ सक्सेना: ये एक बहुत ही कठिन या कहूं बड़ा ही जटिल प्रश्न है जैसा कि मैंने ऊपर भी कहा है कि जब भी कोई परिवर्तन आता है तो वो लोग जो उस परिवर्तन से प्रभावित होते है वो अवश्य ही उसका विरोध करते है | बदलाव में टकराव तो होता ही है इस टकराव से बचना आसान काम नहीं है | जहाँ तक सामंजस्य बिठाने का सवाल है तो दोनों ही पीढ़ियों को समझना होगा और आपसी बातचीत करके थोड़ा अपने आप को और थोड़ा सामने वाले पक्ष की बात सुन कर एवं समझकर और उसके अनुरूप अपने आप को बदलकर सामंजस्य बिठाना होगा | एकदम rigid या अड़ियल हो कर ये संभव नहीं हो सकता | 

Tathaastu Times Desk:   स्त्री के बदलते हुए रोल से बच्चों पर, परिवार पर और नए समाज पर क्या असर हो रहा है या होगा?

डॉ सक्सेना: स्त्री का रोल बदल नहीं रहा है | स्त्रियां पहले भी नौकरी करती थी और बाकी परिवारजनों से उन्हें सहयोग मिलता था क्योँकि वो संयुक्त परिवार का जमाना था | स्त्री नौकरी के साथ साथ परिवार को भी वक़्त देती थी समय के साथ संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित होते गए और जनसँख्या नियंत्रण के चलते एक या दो बच्चो को ही जनम दिया जाने लगा | पहले अधिक बच्चो का ये फायदा था कि बड़े बच्चे छोटे बच्चो की देखभाल कर लेते थे और संयुक्त परिवार में ये बच्चे कब बड़े हो जाते थे कि पता ही नहीं चलता था अब जनसँख्या नियत्रण के चलते एक या दो बच्चो वाले परिवार में स्त्री की जिम्मेदारी बढ़ गयी है | एक समाज को बनाने में स्त्री की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है आज के परिवेश में स्त्रियां अपने छोटे बच्चों को क्रेच में छोड़ कर नौकरी पर जाती है और शाम को लौट कर घरेलू कार्यों के जाल में इतना व्यस्त हो जाती है कि बच्चो के लिए उनके पास वक़्त ही नहीं होता | इसके परिणामस्वरूप आज के समाज में एक ऐसी पीढ़ी पनप रही है जो अपने संस्कार भूलकर पश्चिमी सभ्यता अपनाती जा रही है

Tathaastu Times Desk:   जब स्त्री बदलाव चाह रही है पढ़ना चाहती है स्वावलम्बी होना चाह रही है पर क्या एक माँ, सास, ननद और भाभी के तौर पर भी वो ये बदलाव चाहती है?

डॉ सक्सेना: अवश्य आज की स्त्री की सोच बदल रही है वह स्वावलम्बी होना चाह रही है उस रूढ़िवादी समाज के दायरे से बाहर निकलना चाह रही है स्त्रियां चाहती तो है लेकिन जब तक वे अपने आस पास की स्त्रियों को सहयोग नहीं करेंगी तो ये एक गंभीर समस्या बानी ही रहेगी | जब तक वे एक माँ, सास , ननद, भाभी के तौर पर नहीं बदलेगी तब तक स्त्री का विकास संभव नहीं है | यदि घर की बहु से ये आशा कि जाये कि वह नौकरी करने के साथ साथ वह पूरे घर के कार्यो की जिम्मेदारी भी पूरी तरह से संभाले तो समस्या उत्पन होगी | मेरा तो मानना है की स्त्रियों के साथ साथ घर के पुरषों को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए | उन्हें भी घरेलू कार्यों में मदद करनी चाहिए | पुरष चाहते है की उनकी पत्नी नौकरी करे और साथ ही साथ घर भी अकेले संभाले तो यह बिलकुल गलत सोच है जिसे बदलने की सख्त जरूरत है | आजकल अधिकांश एकल परिवार है तो सभी को अपनी सोच बदलनी होगी और घर की जिम्मेदारी भी सबको मिलकर उठानी होगी |

Tathaastu Times Desk:   आपको कैसे लगता है कि बदलता हुआ समाज एक पुरुष के लिए मानसिक तनाव का कारण बन रहा है

डॉ सक्सेना: देखिये हमारा समाज पुरुष प्रधान है आज भी उसे लगता है कि वह सिर्फ घर पर बैठ कर पत्नी पर हुकुम चलाने के लिए पैदा हुआ है

आज की स्त्री पढ़ी लिखी और अधिकार जानने वाली स्त्री है जो पुरूषों के साथ उनके बराबर या फिर उनसे अधिक कार्य करती है तब वो अपने घर पर अपने पति से घरेलू कार्यो में मदद की अपेक्षा रखती है तो वह गलत नहीं है परन्तु जो संस्कार पुरुषो के दिमाग में कूट कूट कर भर दिए गए है वो उन्हें उद्वेलित करते है यही कश्मकश पुरुषों में मानसिक तनाव का कारण है यदि पुरुष अपने अहंकार को छोड़ कर स्त्री के वजूद को भी अपने बराबर स्वीकार ले तो मानसिक तनाव होने का सवाल ही नहीं उठता | समाज बदल रहा है अच्छी बात है लेकिन जैसे ताली एक हाथ से नहीं बजती वैसे ही किसी एक वर्ग विशेष के बदलने से समाज नहीं बदलता | समाज बदलने के साथ साथ यदि पुरुष वर्ग भी अपनी मानसिकता में बदलाव नहीं लाता तो सही मायने में उसे बदलाव नहीं कहा जा सकता |

Tathaastu Times Desk:   आपके विचार में किसी भी व्यक्ति को मानसिक समस्याओं को दूर करने के लिए या दूर रहने के लिए अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में क्या उपाय करने चाहिए?

डॉ सक्सेना: जैसा कि हम सब लोग बचपन से सुनते आये है कि स्वस्थ शरीर सफलता की कुंजी है | यदि आप स्वस्थ है तो आप सभी समस्याओं का समाधान निकाल सकते है |  मेरी आज की पीढ़ी जिसे Gen Z के नाम से भी पुकारा जाता है यही सलाह है कि अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें और नियमित रूप से योग, प्राणायाम एवं व्यायाम अवश्य करें | इसके अतिरिक्त आज में जीना सीखें | जो बीत चूका है उसे आप बदल नहीं सकते और जो आने वाला है उसे आपने देखा  नहीं है | अतः जो हो रहा है अर्थात जो पल इस वक़्त आप जी रहे है उसका लुत्फ़ उठाये | जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि महत्वकांक्षी होना बुरा नहीं है परन्तु पूरा करने के लिए अपने आज को बर्बाद न करें | आज कि युवा पीढ़ी अत्यधिक महत्वकांक्षी है और हर वक़्त उनका ध्यान उसी बात पर लगा रहता है कि वह आज में जीना भूल चूका है | दूसरी चीज़ जिससे दूर रहने की सलाह दूंगा वो है इंटरनेट | आज का युवा वास्तविक दुनिया में न रह कर एक आभासी दुनिया में रहता है | आभासी दुनिया या ऐसा कहूं कि सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय होते है किन्तु वास्तविक दुनिया से वह दूर हो चुके है | यदि इन कुछ बातों पर ध्यान दें तो मानसिक समस्याओं को अपने से दूर रखा जा सकता है

Tathaastu Times Desk:   सब लोगो का मानसिक स्वास्थ्य तंदरुस्त रहे इसके लिए आप क्या टिप्स देना चाहेंगे?

डॉ सक्सेना: मैं चार सूत्र आपको बताना चाहूंगा इन्हे अगर आप अपने जीवन में अपना सकें आप मानसिक एवं शारीरिक रूप से एकदम स्वस्थ रह सकते है

  • प्रतिदिन कम से कम 45 मिनट व्यायाम अवश्य करें
  • कभी किसी के साथ अपनी तुलना न करें
  • हमेशा सबसे अच्छे की अपेक्षा करें और सबसे बुरे के लिए तैयार रहें |
  • यदि जिंदगी में कभी कोई भी समस्या आये तो ये निम्न बातों को ध्यान में रखें

समस्या हरेक की जिंदगी में होती है और ये आपकी जुन्दगी में भी होंगी यदि उन समस्याओं का समाधान आपके पास है या हो सकता है तो चिंता किस बात की | मामला वहीँ खत्म
और यदि उन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता तो फिर चिंता किस बात की | सब ऊपर वाले पर छोड़ दीजिये जो भी समाधान निकलेगा आपके लिए अच्छा ही होगा |

Tathaastu Times Desk:   आप के लिए एक सफल जीवन के क्या मायने है

डॉ सक्सेना: सफलता और सफल जीवन दो अलग अलग चीजें है | एक आदमी अपने करियर में सफल हो सकता है अपने वयवसाय में सफल हो सकता है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह अपने जीवन में भी सफल हो | भौतिक रूप से व्यक्ति  मान सकता है | यदि वह अपनी नौकरी या फि अपने बिज़नेस में उँचाईआं छूता है तो |

मेरे हिसाब से सफल जीवन तब होगा यदि व्यक्ति तनाव मुक्त हो , शरीर से स्वस्थ हो जो कि मैंने जो चार सूत्र बताये है उनको अपने जीवन में लागू कर सके तो आदमी एक स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन एवं स्वस्थ जीवन प्राप्त कर सकता है

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One thought on “परिवर्तन को  मानसिक रूप से स्वीकारा जाना अति आवश्यक है: डॉ सुधीर सक्सेना

  1. एक बहुत ही जरूरी चिंतन से भरपूर आलेख । हार्दिक बधाई सुधीर जी को और आपकी पूरी टीम को ।

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