आज के समय में जब सोशल मीडिया बहुत से अंट शंट ज्ञान एवं सूचनाओं से भरा पड़ा है हर इंसान ही ज्ञानी हो गया है उस पर सुहागा यह कि जब लोग उस आधी अधूरी एवं तोड़ी मरोड़ी सूचनाओं की तह तक जाये बिना उसे सच मान कर अपनी धारणाएं बना लेते है और फिर वे चाहते है कि दूसरे लोग भी उनसे सहमत हो उसके लिए वे हर जगह जहाँ भी उनको मौका मिलता है वहीँ अपना ज्ञान बघारने लगते है और यदि कोई उन्हें ये बताये कि उनको सूचनाएँ गलत है तो वो अपना पूरा ज़ोर लगा देते है अपने को सही साबित करने के लिए और इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते है ये स्थिति और भी खतरनाक होती है जब आप किसी ऐसी जगह पर हो जहाँ आपका कैरियर भी प्रभावित हो सकता है जैसे कि ऑफिस या आपका कार्यस्थल | ऐसे लोग आपके कुलीग, बॉस या क्लाइंट भी हो सकते है यदि आप आने कुलीग या बॉस से बहस करेंगे तो वो आपका रोज़ का काम करना मुश्किल कर देंगे | यदि क्लाइंट से असहमति दिखाएंगे तो वो आपको बिज़नेस नहीं देगा | यदि आप अपने मित्र से असहमत है तो आपकी दोस्ती दांव पर लग सकती है | घर पर ऐसा कोई व्यक्ति या रिश्तेदार हो तो रिश्तों में खटास आ सकती है | ऐसे विषय जहाँ असहमति या विवाद की स्थिति बनती है उन विषयों को बड़ी सावधानी एवं समझदारीपूर्वक हैंडल करना चाहिए ताकि कोई बेवजह का तनाव न पैदा हो और स्थितियां सोहार्दपूर्ण बनी रहें | ऐसी स्थिति को किस तरह से संभाले यही आज के इस लेख का विषय है
यदि आप लोगों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध चाहते है तो उनके अहम् को संतुष्ट करना सीखें |
सबसे पहले हमें लोगो की मनोवैज्ञानिक स्थिति समझनी होगी | नार्मल डिस्ट्रीब्यूशन (Normal Distribution Curve) के अनुसार अगर आप किसी बड़ी संख्या में लोगों की बुद्धिमत्ता, प्रतिक्रिया, व्यवहार इतियादी को मापते हैं तो ज्यादातर लोग औसत के आसपास होते हैं, जबकि बहुत कम लोग बहुत ज्यादा या बहुत कम स्कोर करते हैं। इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि बहुतयात जनसँख्या औसत के आस पास ही होती है कुछ लोग औसत से नीचे होते है और कुछ ही औसत से ऊपर होते है जिन्हे हम असाधारण प्रतिभा वाले लोग कहते है | तो जिनसे रोज़ आपका वास्ता पड़ेगा वे औसत क्षमता वाले लोग ही होंगे | जिन्हे एक बंधे बँधाये ढर्रे पर चलना है और अपना जीवन व्यतीत करना है | उनको किसी बात की गहराई में नहीं जाना और बस अपने आप को सही साबित करना है | अब आप सोचिये क्या आप भी इसी केटेगरी में है कि कैसे भी करके आपको अपनी बात मनवानी है चाहे उसके लिए सामने वाला आपके विरुद्ध हो जाये |
यदि किसी विषय पर आपकी किसी से बहस हो जाये तो दो बातें हो सकती है पहला सामने वाला भारी पड़ जाये और आप हार जाये और दूसरी बात आप बहस में जीत जाते है और सामने वाले की बोलती बंद कर देते है लेकिन सचाई ये है तब भी आप हार जायेंगे क्योँकि आपने सामने वाले से अपना सम्बन्ध ख़राब कर लिया | आपने उसके अहम् को ठेस पहुंचा दी वो एक बार तो आपके सामने चुप हो जायेगा लेकिन वो आपको कभी माफ़ नहीं कर पायेगा | उसके अंदर एक ऐसी भावना पैदा कर दी आपने अब वो कभी आपको दिल से पसंद नहीं करेगा |
याद रखें यदि आप लोगों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाना चाहते है तो कभी भी उनको बहस में हरा कर उनके अहम् को ठेस न पहुंचाए | अपने कार्यस्थल पर लोगो के विचारों और धारणायों को बदलने की कोशिश न करें | अपने विचारों और धारणाओं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का प्रयास न करें
लेकिन यदि दूसरे लोग ऐसा करते है तो इस स्थिति से कैसे निपटेंगे | इसका एक आसान सा तरीका है कि आप उनसे सहमत हो जाये और बहस न करें | और भविष्य के लिए ऐसी परिस्थिति से बचें कि उस विषय पर बात ही न हो |
अधिकतर लोग अपने धर्म,जाति, बिरादरी, भाषा एवं क्षेत्र को लेकर बहुत ही संवेदनशील होते है | तो कभी भी सामाजिक तौर पर इन विषयों पर कटाक्ष न करें |
लेकिन यदि ऐसा हो कि कोई सामने से आपके ऊपर इन विषयों पर जानबूझ कर अपने सामने बात करता है तो इन बातों पर गौर न करें | वो लोग आपको उत्तेजित करना चाहते है ताकि आप कुछ प्रतिक्रिया दें और वो आपको कुछ बातें और सुनाये | पर यदि आप प्रतिक्रिया नहीं देंगे मतलब आप ईंधन नहीं दे रहे स्थिति को गरमाने के लिए | तो ईंधन की कमी की वजह से बात कुछ समय में ख़तम हो जाएगी |
आपके घर में कोई ऐसा व्यक्ति है जो कि लगभग हर घर में होता ही है जिसके अपने विश्वास या धारणाएं है वो तो हम सबके होते है पर समस्या ये है कि वो व्यक्ति चाहता है कि पूरा परिवार उन्ही धारणायो पर चले उन्ही रीति रिवाज़ों एवं विश्वासों को माने जिनमे उस व्यक्ति की खुद की श्रद्धा है | इसी वजह से परिवारों में कलह होती है | ये व्यक्ति कोई भी हो सकता है दादा-दादी, माता-पिता, सास-ससुर या बहु-बेटा या कोई भी | ऐसी स्थिति को कैसे हैंडल किया जाये | उनसे रोज़ बहस की जाये | तनावपूर्ण स्थितियां बनायीं जाएँ | मानसिक शांति भंग की जाये | या फिर चुपचाप उनकी बात मान ली जाये | दोनों ही चीज़ें गलत है | जिस तरह हम अपनी धारणाएं नहीं बदल सकते उसी प्रकार दूसरा व्यक्ति भी अपनी धारणाये नहीं बदल सकता खास करके जब वो बुजुर्ग हो क्योँकि आपकी धारणाये तो 15-20 -25 वर्ष पुरानी है लेकिन उनकी 50 -60 -70 वर्ष पुरानी है आप उनके कहने पर नहीं बदल सकते तो वो आप के कहने से कैसे बदल सकते है उनका अहम् आपके अहम् से ज्यादा परिपक्व है उसे तोड़ने के लिए ज्यादा मेहनत और शक्ति लगेगी | यदि आप उन्हें तोड़ भी देंगे तो भी कोई खुश नहीं रहेगा | आप अपनी मर्ज़ी करके भी खुश नहीं होंगे क्योँकि आपका परिवार का दिल तो दुखी ही होगा | ऊपर से चाहे वो आप की ज़िद के आगे झुक जाये पर अंदर से वो कभी खुश नहीं होंगे | तो फिर क्या किया जाये | उनके हिसाब से जीवन जिया जाये | या फिर अपनी मर्ज़ी की जाए |
इस समस्या का समाधान है मध्यम मार्ग | महात्मा बुद्ध ने दिया हमें मध्यम मार्ग | हम लोग हमेशा अतियों पर जीते है या तो बहुत अधिक या फिर बिलकुल नहीं | अति हर चीज़ की बुरी होती है या तो हम बहुत खाएंगे या फिर उपवास रखेंगे | दोनों ही स्थितियां गलत है | अपने परिवार में अपने नज़दीकी रिश्तों को हम मध्यम मार्ग से ठीक रख सकते है जैसे सितार के तारों को ढीला छोड़ने से सुर नहीं निकलते और ज्यादा कस देने से तार टूट सकते है सही सुर लगाने के लिए मध्यम मार्ग चाहिए न कम न ज्यादा बस स्वादनुसार | आप धीरे धीरे अपना पक्ष रखें | एकदम से निर्णय न लें | पानी की एक एक बूँद टपकने से भी एक सख्त पत्थर पर निशान पड़ जाते है तो क्या धीरे धीरे प्रयास करने से कोमल से दिल नहीं पिघल सकते | बस बूँद बूँद प्रयास करना होगा | और परिस्थितियाँ आपके पक्ष में होती जाएँगी | बहस करने से दूसरों का अहम आहत होता है | आप सही हो फिर भी अपने अहम् की वजह से दूसरा नहीं झुकता और नुकसान आपका ही होगा | तो यदि आप भी किसी ऐसी स्थिति का सामना कर रहे है तो तर्क-वितर्क का रास्ता छोड़ कर मध्यम मार्ग अपनाईये और देखिये जादू | कैसे दिल पिघलते है |
उम्मीद है ये लेख से आपके कई सवालों के उतर मिले होंगे | कृपया अपने सुझाव लिखें |
हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत न हो फिर भी सबको हक़ है अपनी बात कहने का |
आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो | तथास्तु |
Your words always leave a impact. Truly said ❤️
आपके लेख हमारे दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान हैं और बहुत प्रेरक हैं।💛