प्रार्थना: अनंत से आत्मा का मौन संवाद
दुनिया का देश कोई भी हो, धर्म कोई भी हो सबके अलग रिवाज़ है, अलग विश्वास है अलग मान्यताएं है लेकिन एक चीज़ जो आपको हर जगह मिलेगी वो है प्रार्थना | तरीके अलग हो सकते है भाषा अलग हो सकती है शब्द अलग हो सकते है लेकिन उदेश्य एक ही होता है अपने इष्ट से अपनी बात कहना |
प्रार्थना एक बहुत ही गहरी बात है ये एक संवाद है हमारा उस परमशक्ति से जो इस ब्रह्माण्ड को चला रही है |
परन्तु आप प्रार्थना वो मत समझ लेना जब आप अपने पूजा के स्थान पर जाकर मांगते है भगवान् से कि मेरा ये काम कर दो, लाटरी लगवा दो, व्यापार में फायदा करवा दो, नौकरी लगवा दो, शादी करवा दो इतियादी इतियादी | ये प्रार्थना नहीं है ये तो मांगे है जैसा कि आप एक फेहरिस्त दे रहे हो भगवान् को कि ये ये काम कर देना | जैसे वो भगवान् न हो बस आपकी इच्छाएं पूरी करने का एक साधन हो
मैंने एक धार्मिक गुरु का सत्संग देखा जिसमे भक्त अपने अनुभव बता रहे थे कि जब उनको किसी चीज़ की जरुरत पड़ी तो उन्होंने अपने गुरूजी से प्रार्थना करी और उनकी कृपा से वो चीज़ मिल गयी | मुझे बड़ी हैरानी हुई कि गुरु है या नौकर आपने कहा ये दे दो उन्होंने दे दिया, आपने कहा ये कर दो उन्होंने कर दिया |
हमारी प्रार्थनाये भी रटी रटाई होती है हमारे धर्म ग्रंथ या हमारे धर्म गुरु हमें प्रार्थना का एक प्रारूप देते है कि हमें ऐसे बात करनी चाहिए ईश्वर से | रोज़ वही दोहराना है | अब आप सोचिये यदि आप एक इंसान से भी रोज़ रोज़ एक ही बात कहेंगे तो क्या वो बोर नहीं हो जायेगा | तो फिर अनंत वर्षों से एक ही बात ईश्वर से कर रहे हो तो क्या वो बोर नहीं हो जायेगा |
सूफी संत रूमी की एक कहानी है जब पैगम्बर मूसा एक पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्होंने एक चरवाहे को ईश्वर से प्रार्थना करते सुना | वह चरवाहा कह रहा था “हे ईश्वर मैंने सिर्फ तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम बहुत दयालु हो | मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं आप से मिलूं | जब आप मुझे मिलोगे तो मैं आपको बिलकुल वैसे ही नहलाऊंगा जैसे मैं अपनी भेड़ो को नहलाता हूँ , आपके बालों में कंघी करूँगा और आपकी जुएं भी निकलूंगा | आपको प्यार से खाना भी खिलाऊंगा |” वो चरवाहा ईश्वर से बिलकुल वैसे ही बात कर रहा था जैसे वो अपनी भेड़ो से करता होगा | ये सुनकर पैगंबर मूसा को बहुत ही क्रोध आया | उन्होंने चरवाहे से कहा “तुम्हे क्या लगता है कि ईश्वर इन भेड़ो के जैसा है | इस तरह तुम ईश्वर का अपमान कर रहे हो |” ये सुनकर चरवाहा डर गया और उसने पैगंबर मूसा को कहा कि उसे नहीं पता कि ईश्वर से कैसे बात की जाती है आप कृपा करें और मुझे बताये कि मै कैसे उस ईश्वर की आराधना करूँ |” इस पर पैगम्बर ने उस चरवाहे को प्रार्थना करने के तरीका बताया | फिर पैगम्बर मूसा अपने रास्ते पर चल दिए लेकिन अभी थोड़ी दूर ही पहुंचे थे तो उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी | “हे मूसा ! तूने ये क्या किया उस भोले चरवाहे की बातों में मुझे आनंद मिलता था | वो जो भी कहता था मुझे सीधे अपने दिल से कहता था | तुमने एक रटी रटाई प्रार्थना देकर सब ख़राब कर दिया | ये प्रार्थना तूने उसे दी है वो दिल से नहीं निकलेगी तूने सब मजा खराब कर दिया |” ये सुनकर पैगम्बर मूसा उलटे पांव वापिस गए और चरवाहे से माफ़ी मांगी और कहा तुझे जैसे प्रार्थना करनी है ईश्वर से वैसे ही कर | उस परमपिता को रिझाने के लिए भावनाएं चाहिए शब्द नहीं |
तो प्रार्थना है क्या ?
प्रार्थना है उस अनंत से आत्मा का मौन संवाद |
जहाँ शब्दों की बिलकुल भी जरुरत नहीं प्रार्थना है उस परमपिता का धन्यवाद जो भी मिला हुआ है उस से बेशर्त | ये जीवन , ये साँसे, ये हवा,पानी, खाना, पृथ्वी, पहाड़ , पेड़-पौधे , रिश्ते- नाते, और भी बहुत कुछ | अपने आस पास देखो | कितना कुछ है जो हमें स्वयं स्फूर्त ही मिला है जिसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता | आंख बंद कीजिये और देखिये साँसे लगातार आ जा रही है बिना प्रयास के | जब एक सांस बाहर जाती है तो क्या गॉरन्टी है कि वो वापिस भी आएगी | लेकिन वो आती है तभी तो हम जीवित है | जीवन में और कुछ भी नहीं हो तो भी अगर सिर्फ सांस चल रही है तो भी उसका धन्यवाद दें | हमारा स्वास्थ्य ठीक है कृतघता से भर जाएँ वाह वाह! क्या बात है मैं स्वस्थ हूँ | आप में सोचने समझने की क्षमता है अहोभाव ! मेरा मस्तिष्क काम कर रहा है इस से अच्छी बात क्या हो सकती है | बंद आँखों से अपने आस पास देखिये और हर उस चीज़ पर ध्यान ले कर जाएँ जिस वजह से आप उस सर्वशक्तिमान के आभारी हो सकते है | आपके पास रहने को घर है, माता पिता, जीवन साथी, बच्चे, दोस्त, समाज, देश इतियादी, नौकरी, शिक्षा और धीरे धीरे आप देखेंगे कि दायरा बढ़ता जा रहा है | जितना आप धन्यवाद से भरेंगे उतना ही परमात्मा के समीप महसूस करेंगे|
समस्या ये है कि हमारा ध्यान सदा उन चीज़ों पर ही जाता है जो हमारे जीवन में नहीं है | हम सिर्फ अपने जीवन में होने वाली कमियोँ के लिए ही रोते है धन नहीं है, प्यार नहीं मिला , दोस्त नहीं मिला, कैरियर अच्छा नहीं है और भी बहुत सी बातें | कभी नोटिस किया है यदि कोई दांत टूट जाये तो जीभ बार बार उसी जगह पर जाती है इसी प्रकार हमारा ध्यान सदा उन्ही चीज़ों पर जाता है जो नहीं है | यदि ध्यान उन चीज़ों पर जाये जो मिली है तो आप धन्यवाद से भर जायेंगे | आपका मन गद गद हो जायेगा अरे मेरे पास तो ये है, ये भी है | कितना दयालु है ईश्वर जो बिना शर्त सब दिया |
यदि आप नास्तिक है और ईश्वर को नहीं मानते तो भी कोई समस्या नहीं | आप इस ब्रह्माण्ड के आभारी हो सकते है | आप प्रकृति के आभारी हो सकते है और जिसके लिए भी चाहे अपना आभार प्रकट कर सकते है हर उस चीज़ के लिए जो आपको अपने जीवन में मिली है | अपने माता पिता के आभारी हो सकते है जिनकी वजह से आपका होना संभव हुआ है | हो सकता है कुछ माता पिता अपने बच्चों की सही परवरिश नहीं कर पाते | फिर भी अगर आज वे है तो इसका भी कारण वो ही है तो इतनी वजह काफी है उनका आभारी होने के लिए | इसलिए बुरी से बुरी परस्थिति में भी अहोभाव का दामन न छोड़े |
दिन में किसी भी वक़्त थोड़ा समय अपने साथ बिताये | पलकों का परदा गिरा दें और धीरे से थोड़ा अपने अंदर की तरफ खिसक जाएँ | अपने मन के घोड़े की लगाम खींच कर उसे कस कर बांध दे | और खुद को भर दे अहोभाव से उस अनंत एवं अकाल ऊर्जाशक्ति के प्रति, जिसने इस ब्रह्माण्ड को बनाया, इस पृथ्वी को बनाया, पृथ्वी पर जीवन बनाया, हमें बनाया | धीरे धीरे आप उस अनंत से अपना जुड़ाव महसूस करने लगेगे | आपको लगने लगेगा कि आप एक ऊर्जा क्षेत्र में चल रहे हो | कोई ऊर्जा हमेशा आपके साथ चल रही है | जीवन की समस्याओं का हल सहज स्फूर्त ही मिलने लगा है कोई अदृश्य शक्ति आपको गाइड कर रही है |
आपकी कोई समस्या हो या जीवन में कोई रास्ता न दिख रहा हो तो बस खिसक जाएँ स्वयं के भीतर और प्रार्थना करें | उस सार्वभौमिक शक्ति से अपना प्रश्न या समस्या बताएं और उत्तर की प्रतीक्षा करें | अपनी तरफ से कोई उत्तर न ढूंढे, बस प्रतीक्षा करें क्योँकि हमारी बुद्धि सीमित है ज्ञान भी सीमित है | तो जो हल या उत्तर हम ढूंढेंगे वो भी सीमित ही होगा | लेकिन इस ब्रह्माण्ड के पास अलौकिक बुद्धिमत्ता है उसके पास हर परस्थिति का विकल्प है और उसमे परस्थितियों को अपने अनुसार बदलने की क्षमता भी है | इसलिए आप सिर्फ अपनी समस्या उसके सामने रखे और उत्तर की प्रतीक्षा करें | और यदि आप पूर्ण विश्वास के साथ ये सब करेंगे तो निश्चित ही उत्तर आएगा, परस्थितयां अपने आप अनुकूल होंगी और अंत में सब ठीक होगा |
हो सकता है आरम्भ में आप को थोड़ा मुश्किल और अजीब लग सकता है लेकिन एक बार जब आपके हाथ चाबी लग गयी तो आपको भी मज़ा आने लगेगा और सब बहुत ही आसान लगने लगेगा |
जब भी हमारे जीवन में कोई समस्या आती है तो हम डर कर, घबरा कर बाहर की और भागते है और दूसरों से अपनी समस्या का हल चाहते है | लेकिन मैं कहती हूँ बाहर नहीं अपने अंदर की तरफ जाओ और वही से आपको अपनी समस्या का हल मिलेगा |
प्रार्थना ही है उस सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा से जुड़ने का तरीका, उस असीम, अनंत, अकाल से लयबद्ध होने का एक सरल उपाय |
मेरी प्रार्थना है कि सब अपने हिस्से की शांति प्राप्त करें |
तथास्तु | आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो ऐसा आशीर्वाद है |
“असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय|”
कृतज्ञता एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ने का मार्ग है।
Awesome, remarkable. Classic example of deepest thoughts with experiment.