Dr. Mamta Sharma
वो स्त्री… जिसे ज़रूरत नहीं दुनिया की चकाचौंध की, दिखावे की।
वो जो हर दिन अपनी मौन शक्ति में संवरती है — बिना किसी शोर, बिना किसी स्वांग के।
जिसके लिए श्रृंगार सिर्फ उसके सत्य का उजाला है, और उसकी मुस्कान — उसकी आत्मा की शांति का प्रतिबिंब।
वो कोई साधारण स्त्री नहीं है।
उसकी खामोशी में भी संगीत है, उसकी निगाहों में अधूरी कविताएँ हैं, और उसका स्पर्श — जैसे किसी टूटे हुए मन पर शुद्ध प्रेम का लेप।
वो ना दौड़ती है दिखावे की दुनिया में, ना ही किसी की स्वीकृति की भूखी है।
क्योंकि उसे अपने भीतर की रोशनी पर भरोसा है — वो रोशनी जो किसी भी कमरे को भर दे, बिना कोई शब्द बोले।
वहीं, एक पुरुष भी है —
जो जीवन की ठोकरों से टूटा, पर हर टूटन ने उसे निखारा।
अब वह सतही सुंदरता से नहीं बहकता। उसे चाहिए एक स्त्री —
जो अपने घावों के साथ भी खड़ी हो, आत्म-सम्मान से भरी हुई।
उसे चाहिए वो नारी — जो सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि सच्ची हो।
जिसकी आँखों में सागर की गहराई हो, और आत्मा में चाँदनी की ठंडक।
ना दिखावा, ना शोर — बस एक शांत, आत्मिक उपस्थिति
जो उसके अस्तित्व को अर्थ दे सके।
वो पुरुष आज़ादी नहीं माँगता —
वो आत्म-समर्पण चाहता है,
पर वो समर्पण किसी निर्बलता से नहीं, बल्कि नारी की पूरी शक्ति से उपजा हो।
वो जानता है —
सचमुच की सुंदरता किसी चेहरों में नहीं, आत्मा की पारदर्शिता में बसती है।
उसके लिए नारी का स्पर्श एक प्रार्थना है,
और उसकी खामोशी — एक गूढ़ संवाद।
इसलिए, ओ स्त्री…
तू रुक।
अपने आप को छोटा मत कर, किसी और की परछाई में मत ढल।
तेरा होना ही एक कविता है,
तेरी सादगी ही सबसे बड़ा चमत्कार है।
जो तुझे सच में देखेगा —
वो सिर्फ तेरा चेहरा नहीं,
तेरी आत्मा से प्रेम करेगा।
हर बार।
हर जन्म में।
हर साँस के साथ।