आशा- एक विश्वास कि सब अच्छा होगा

आशा – एक ऐसा शब्द जो मानव को जीने के लिए प्रेरित करता है | एक उम्मीद कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा | एक आस कि सब ठीक हो जायेगा | एक विश्वास कि जिसके लिए मेहनत कर रहे है वो मिल जायेगा | एक अपेक्षा कि जो चाहा है वो पा ही लेना है | यदि आशा न हो तो जिंदगी बिलकुल नीरस और उबाऊ हो जाएगी | यह आशा ही है जो हमें अपने आज को बेहतर तरीके से काम करने के लिए प्रेरित करती है |

जब कल में सम्भावना दिखती है तभी तो आज हमें मेहनत करने के लिए प्रेरणा मिलती है उज्वल भविष्य की कामना ही इंसान को वर्तमान में अधिक कर्म करने की शक्ति देती है भविष्य की योजनाओं पर ही हमारा आज टिका हुआ है | जिस इंसान के पास भविष्य के सपने नहीं होते, भविष्य की योजनायें नहीं होती उसके वर्तमान में भी कोई उत्साह नहीं होता | जो कल के लिए उत्साहित नहीं है वो आज भी कुछ नहीं करेगा | उसके लिए जीवन एक यंत्रवत प्रक्रिया है जिसमे बस सोना, जागना, खाना, कमाना ही उद्देश्य है | ऐसा जीवन जीना पशुओं की तरह जीना है जिसमे न कोई उमंग है और न ही कोई तरंग है |

एक बहुत ही बजुर्ग आदमी सड़क के किनारे वृक्ष लगा रहा था | एक राहगीर ने उसे देखा और उत्सुकतावश पूछ लिया कि बाबा इस उम्र में आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो ? आप की उम्र देख कर लगता नहीं की जब तक ये पेड़ बड़ा होगा और फल देगा तब तक आप जीवित भी रहेंगे | बाबा ने एक गहरी नज़र उस पूछने वाले पर डाली और बोलै ” ये जो चारों तरफ हरे भरे पेड़ तुम देख रहे है जो सबको छाया और फल दे रहे है ये किसने रोपे है? हमारे पिछले पीढ़ी के लोगों ने, यदि वो भी तुम्हारे जैसा सोचते कि हम तो फल नहीं खा पाएंगे और छाया का आनंद नहीं ले पाएंगे तो क्या ये धरती इतनी ही हरी भरी होती ? क्या ये पेड़ होते ? आज के किये हमारे कर्म हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी लाभान्वित करते है तो ये सोचना कि जो कार्य हम करते है उसका फल सिर्फ हमे ही मिले गलत है | मैं ये पेड़ लगा रहा हूँ जो भविष्य में आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ हवा देगा, छाया देगा और फल देगा |” वर्तमान में जो हम कर्म करते है वह हमारे भविष्य की नीव है आज जो हम हवाई जहाज में यात्रा करते है वो राइट बंधुओं का देखा हुआ एक सपना ही है जो उन्होंने हवा में उड़ने के लिए देखा था | आज जो भी आधुनिक सुविधाएं हम भोग रहे है ये किसी न किसी की आशा ही है जो उन्होंने कभी की थी |

हम रहे न रहे लेकिन जिंदगी तो चलती ही रहती है | इसलिए आशा का दामन हमेशा थामे रखे | बड़े बड़े सपने देखे | उन सपनो को पूरा करने के लिए योजनाए बनाये | खूब मेहनत करें और सही दिशा में करें |

बहुत बार जीवन में ऐसा समय आता है जब कोई भी उपाय काम नहीं करता | कुछ भी अच्छा नहीं होता | चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा दिखाई देता है | कोई रौशनी की किरण दिखाई नहीं देती | हम किसी ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते है कि कोई रास्ता नहीं सूझता | ऐसे कोई भी परिस्थितियाँ हो सकती है  कोई आर्थिक संकट हो सकता है, व्यापार में हानि, नौकरी चला जाना, कोई रोजगार न मिलना, क़र्ज़ न चुका पाना,  कोई परिवारिक संकट, मन मुटाव, जायदाद का झगड़ा, कोई मानसिक संकट या किसी बुरी आदत की वजह से किसी बुरी परिस्थिति में फंस जाना, जहाँ से निकलने का कोई रास्ता न दिखाई दे रहा हो ऐसे में सिर्फ एक छोटी सी आशा की किरण भी मिल जाये तो इंसान में हिम्मत आ जाती है | वो बड़े से बड़े संकट को भी एक उम्मीद के सहारे हल कर सकता है | ऐसे बहुत से उदाहरण हमें मिल जायेंगे जहाँ एक आशा की वजह से लोगों ने बड़े संकटों का सामना किया |

वर्ष 1989 में आसनसोल के रानीगंज की कोयले की खदान में 65 लोग चार दिन तक फंस गए थे एक आशा कि  ‘उन्हें बचा लिए जायेगा’ की वजह से वे लोग भूखे प्यासे धरती के अंदर जीवित रहे | 

वर्ष 2018 में, थाईलैंड की थम लुआंग नामक गुफा में जूनियर फुटबॉल टीम के 12 सदस्य जिनकी आयु सिर्फ 11 से 16 साल के बीच थी तथा उनका कोच भारी बरसात की वजह से भीतर फंस गए | एक सप्ताह से भी अधिक समय तक बाहरी दुनिया से उनका कोई भी संपर्क नहीं हो पाया और न ही उनका कोई अता पता मिल पाया | बहुत ही संघर्षों के बाद लगभग 15 दिन के बाद उन्हें बाहर निकाला जा सका | ये एक बहुत ही मुश्किल बचाव अभियान था जिसमे कि 10000 लोगों का प्रयास शामिल था | गुफा से लगभग एक बिलियन लीटर पानी बाहर निकाला गया | लेकिन उन सब को सही सलामत बचा लिया गया |

2023 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 134 को जोड़ने के लिए बनाई गई सिल्कयारा बेंड-बरकोट सुरंग का एक हिस्सा निर्माणाधीन होने के दौरान ढह गया । सुरंग के अंदर 41 मज़दूर फंस गए। ये 41 मज़दूर 16 दिन तक सुरंग में फंसे रहे | अब देखिये 16 दिन तक जहाँ बाहर से उन फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की गयी और दूसरी तरफ अंदर फंसे लोगों ने भी उम्मीद का दामन थामे रखा और जिन्दा रहने की हर संभव कोशिश की | सभी 41 लोगों का इतने दिनों बाद जिन्दा बचना अपने आप में एक मिसाल है | ये कुछ उदाहरण है कि जहाँ बचने की ज़रा सी भी गुंजाइश नहीं थी वहां छोटी सी उम्मीद और बहुत सारे प्रयासों ने असंभव को संभव कर दिखाया | ऐसे ही कई उदाहरण आपको अपने आस पास भी मिल जायेंगे जब कोई सिर से पैर तक क़र्ज़ से डूबा हुआ होगा पर उसने अपनी कोशिशों से अपनी आर्थिक स्थिति सुधार ली होगी या फिर जिसने संकल्प से किसी असाध्य बीमारी को हरा दिया होगा | मनीषा कोइराला, सोनाली बेंद्रे, महिमा चौधरी, युवराज सिंह इतियादी जाने माने लोग है जिन्होंने जीने के आस में ही नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया |

इसी क्रम में हम कैफ़े कॉफ़ी डे के मालिक स्वर्गीय वी जी सिद्धार्थ की पत्नी मालविका हेगड़े का उदाहरण भी ले सकते है जिन्होंने अपने पति की आत्महत्या के बाद कंपनी के वागडोर संभाली और उसे जल्दी ही क़र्ज़ से बाहर ला कर फिर से एक सफल वेंचर में बदल दिया |

जैसे अच्छे वक़्त की एक बुरी बात है कि वो बदल जाता है उसी तरह बुरे वक़्त की भी एक अच्छी बात है कि वह भी बदल जाता है | सपने देखें और बहुत बड़े बड़े सपने देखे | आने वाले कल की उम्मीद से ही हमारी आँखों में चमक आती है हमारे अंदर एक चिंगारी जलती रहती है जो हमें आज मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है | उज्वल भविष्य की उम्मीद ही हमें जिन्दा रहने के लिए प्रेरित करती है | इसलिए परिस्तिथियाँ कैसी भी हो आशा का दामन थामे रखें |

तथास्तु -आपकी हर इच्छा पूरी हो ऐसा आशीर्वाद है

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *