एक बार एक आश्रम में एक बड़े संत पुरुष अपने शिष्यों के साथ निवास करते थे | संत महाराज जी को जानवरो से बहुत ही लगाव था उनके आश्रम में बहुत से पालतू जानवर थे | गाय, बछड़े , श्वान , बिल्ली इतियादि बड़े प्रेम से आश्रम में निवास करते | महाराज जी को सभी प्रिय थे परन्तु एक बिल्ली से उन्हें खास लगाव था बिल्ली भी महाराज से बहुत ही हिली मिली थी | बिल्ली बेधड़क आश्रम में टहलती, कभी निसंकोच महाराज जी की गोद में जा बैठती | वर्ष में एक बार आश्रम में बहुत बड़ा यज्ञ होता | इस वर्ष में यज्ञ का आयोजन किया गया | महाराज पूजा में बैठे, इतने में बिल्ली भी उनकी गोद में आ बैठी | महाराज जी ने अपने शिष्यों से कहा कि बिल्ली को बाहर टोकरी के नीचे रख दे ताकि यज्ञ में व्याधान न हो | अब हर वर्ष ऐसे ही होता | यज्ञ से पहले बिल्ली को टोकरी के नीचे रख दिया जाता ताकि यज्ञ में वो महाराज जी को परेशान न करे | कुछ वर्ष बीते | महाराज जी का देहावसन हो गया | आश्रम के लिए नए महाराज चुने गए | वार्षिक यज्ञ का समय आया तो नए महाराज जी को याद आया कि बड़े महाराज यज्ञ से पहले बिल्ली को टोकरी के नीचे रखते थे तो शिष्यों को आज्ञा हुई कि बिल्ली लाई जाये और उसे टोकरी के नीचे रखा जाये | वर्षो बीत गए , महाराज बदलते रहे लेकिन यज्ञ से पहले बिल्ली को टोकरी के नीचे रखने की परम्परा सदा ही चलती रही |
इस कहानी को कहने का एक खास तात्पर्य है, जब भी कोई परम्परा आरम्भ होती है उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है परन्तु समय बीतने के साथ वो परम्पराये सिर्फ एक प्रथा बन कर रह जाती है |
आज के आधुनिक समय में हम अपनी परम्पराओं से मुँह मोड़ रहे है और इन्हे अंध विश्वास का नाम देते है, लेकिन यदि आप थोड़ा गहराई से विवेचन करेंगे तो पाएंगे की हिन्दू धर्म की मान्यतायों का एक बहुत ही मजबूत वैज्ञानिक आधार है | आईये थोड़ा विस्तार से बात करते है |
हिन्दू धर्म में मूर्तियों की पूजा की जाती है बहुत से लोग इस बात की आलोचना करते सुने जाते है | हमारे विधि विधानों पर भी प्रश्न उठाये जाते है | इन्हे कर्म कांड कहा जाता है लेकिन यदि आप गहराई में जायेंगे तो आप इन विधि विधानों का तातपर्य जान पाएंगे |
रोहंडा बयर्ने नामक लेखिका की सीक्रेट नाम की एक पुस्तक दुनिया भर में बहुत ही प्रसिद्ध हुई है जिसमे आकर्षण के सिद्धांत की बात की गयी है एवं आभार प्रकट करने पर बहुत ही जोर दिया गया है बहुत से लोग दावा करते है कि इस पुस्तक को पढ़ कर तथा उसमे लिखी विधियों से उन्हें बहुत लाभ हुआ है | अब यदि हिन्दू धर्म की बात की जाए तो ये धर्म की आधारशिला ही आभार पर रखी है
हम आभारी है इस प्रकृति के जिसने हमें जीवन दिया | इसलिए हम प्रकृति के हर रूप की पूजा करते है सूर्य से इस पृथ्वी को जीवन मिला तो हमने सूर्य को भगवान् माना और पूजा की | वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश इन सब के बिना जीवन संभव नहीं है हमने इन सब का आभार प्रकट करने के लिए इन्हे देवता का रूप दिया और हमारे नित्य कर्म एवं विभिन्न अवसरों पर धन्यवाद देने का विधान बनाया क्योँकि इनके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है इनकी पूजा करना आभार प्रकट करने का एक तरीका है |
ये हिन्दू धर्म की ही खूबसूरती है कि जिसको भी हमने धन्यवाद देना चाहा है तथा आभार प्रकट करना चाहा है उसे हमने अपने धर्म से जोड़ लिया है ताकि हम उसकी अराधना कर सके और प्रतिदिन उसके प्रति अपना आभार प्रकट कर सके |
जीवनयापन के लिए धन की अत्यंत आवश्यकता है तो हमने धन समृद्धि की माँ लक्ष्मी के रूप में अराधना की | हर मनुष्य के लिए ज्ञान अर्जित करना अत्यंत आवश्यक है ज्ञान को सम्मान देने के लिए उसे हमने माँ सरवती के रूप में पूजा की | शक्ति और शौर्य पाने के लिए हमने माँ दुर्गा को आराध्य माना | वर्षा के लिए हमें इंद्र देवता की अराधना की तथा अग्नि जिसने मनुष्य जीवन को एक अलग दिशा दी उसे भी हमने अग्नि देवता की तरह ही पूजा | हम जीवनदायिनी पेड़ पौधों की भी पूजा करके उनका आभार व्यक्त करते है | पशुओं को भी अपने आराध्यों के वाहन के रूप में जोड़ कर उनको भी अहोभाव देने की परम्परा हिन्दू धर्म में ही मिलेगी |
जीवन के प्रत्येक चरण में परमात्मा एवं प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए हमने विभिन विधि विधानों से जोड़ा | मानव के जन्म होने पर तथा आयु के विभिन्न चरणों पर, जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है तो परमात्मा को धन्यवाद देने हेतु विभिन्न विधि विधान किये जाते है यहाँ तक की मृत्यु पर भी कई सारी रस्मो की अदायगी की जाती है | यहाँ तक कि आप पाएंगे हमारे अधिकतर उत्सव भी इसी से जुड़े है क्योँकि कृषि सदियों से जीवनयापन का प्रमुख साधन है तो हमारे त्यौहार भी कृषि के बोने एवं फसल के पकने तथा काटने के समय के अनुसार ही मनाये जाते रहे है हर उत्सव पर पूजा का ही विधान है
हाँ ये अलग बात है की ये विधि विधान जो कि प्रकृति एवं परमात्मा का धन्यवाद प्रकट करने का एक तरीका था वो समय के साथ सिर्फ बिल्ली को टोकरी के नीचे रखने जैसी एक परम्परा बन कर ही रह गया | हमारे विधि विधानों में कोई भी खराबी नहीं है सिर्फ उसे अँधाधुंध बिना सोचे समझे पालन किये जाने में ही समस्या है |
जीवन के हर क्षण में हमें प्रकृति का धन्यवाद करना चाहिए | ये चाँद, ये सूरज, ये धरा, ये पवन,ये जल, ये साँसे और भी बहुत कुछ जो हमें हर पल जीवन दे रहा है उनके प्रति कृतार्थ होना चाहिए |
अब क्यूंकि हम मानव है और प्रकृति ने हमे कल्पना करने की अदभुत क्षमता दी है तो हमने प्राकृतिक तत्वों एवं शक्तियों को भी एक रूप दिया है ताकि हम उनसे संवाद कर सके | यही कारण है कि हमने मूर्तियाँ बनाई | हमने अपनी कल्पना को एक रूप दिया ताकि हम प्रकृति से जुड़ाव महसूस कर सकें |
हालाँकि हमारे धर्म के कई संतो ने परमात्मा के निराकार रूप की चर्चा है लेकिन साथ में ये भी बताया है कि निराकार तक पहुँचने की यात्रा भी साकार से ही आरम्भ होती है क्योँकि साधना की शुरुआत में साधक के लिए साधन आवश्यक है |
एक साधारण मनुष्य के लिए तो परमात्मा का साकार रूप ही जरूरी है जिसके साथ वो तदात्मय बना सके | हर मनुष्य का जीवन में अपना अलग उद्देश्य होता है किसी को धन चाहिए तो किसी को ज्ञान किसी को रक्षा तो किसी को शक्ति, तो जैसा जिसका उदेश्य वैसा उसका आराध्य |
रहोंदा बयर्ने भी अपनी पुस्तक में इसी बात पर जोर देती है की जो आपकी इच्छा है आप उसी चीज़ की कल्पना बार बार करे | तो जब आप अपने आराध्य की आराधना करते है तो आप स्वत: सुफूर्त उस चीज़ की कल्पना अपने मस्तिष्क में करते ही है इस तरह आप अपने अचेतन मन में एक गहरा विश्वास उत्पन कर लेते है
जैसा की पुस्तक में कहा है कि आपका गहरा विश्वास ही आपको सफलता दिलवाता है तो ये भी व्यावहारिक बात है की हम स्वयं पर गहरा विश्वास नहीं कर सकते बनिस्पत इसके हम अपने आराध्य पर अटूट विश्वास एवं श्रद्धा कर सकते है | हमारे पूर्वजों ने इस विज्ञान को समझा तथा हमें उन प्रस्तिथियोँ में जहाँ हम स्वयं पे भरोसा नहीं कर सकते हमें विश्वास करने के लिए एक मजबूत सहारा दिया ताकि हम कठिन प्रस्तिथियोँ में भी बेसहारा न हो |
तो अगली बार जब भी आप पूजा करें तो यांत्रिक तरीके से न करें बल्कि अपने आराध्य पर पूरे विश्वास एवं श्रद्धा से अराधना करें | पूजा की विधि कोई भी हो वो ज्यादा महत्व नहीं रखती, महत्व इस बात का है कि आप में कितनी श्रद्वा एवं विश्वास है |
हमारे वेदों , उपनिषदों तथा ग्रंथो में भी जीवन के मूलभूत नियमो का वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है, यहाँ पर उन सब नियमो का उल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है लेकिन फिर भी अगर हम गीता की बात करें तो गीता में श्री कृष्ण जीवन में कर्म एवं कर्तव्य पर बहुताधिक जोर देते है जो कि एक मनुष्य के जीवन का आधारभूत कारक है |
सो जो लोग हिन्दू धर्म को अंधविश्वासों का धर्म कहते है उनके लिए ये उत्तर है कि हम अंधविश्वासी नहीं है बल्कि ये धर्म अत्यंत वैज्ञानिक आधारों पर निर्मित है |
और जो लोग यांत्रिक तरीके से कर्म कांड करते है उनके लिए सुझाव है कि वे खुले मस्तिष्क से ये समझे कि जो भी हम धर्म के नाम पर कर रहे है उसमे निहित सन्देश क्या है और उस क्रिया को करने का तातपर्य क्या है वर्तमान समय एवं जीवन की जरूरतों के हिसाब से हमें अपनी धार्मिक क्रियाओं एवं रीति रिवाज़ों में क्या बदलाव करने होंगे ताकि हमारे धर्म का वैज्ञानिक आधार सदा बना रहे