Article By Dr. Satinder Maken
किसी समय में किसी गांव में एक सूफी फ़क़ीर छोटी सी झोपडी में रहता था | एक दिन लोगो ने देखा शाम के धुंधलके में अपनी झोपडी के बाहर वह फकीर कुछ ढूंढ रहा था | उसके शिष्यों ने पूछा “बाबा क्या ढूंढ रहे हो” तो फ़क़ीर ने जवाब दिया कि मेरी सुई गिर गई है उसे ही ढूंढ रहा हूँ | शिष्य भी सुई ढूंढ़ने लग गए | काफी वक़्त तक जब सुई नहीं मिली तो शिष्यों ने पूछा “इतना ढूंढ़ने के बाद भी सुई नहीं मिली क्या आपको अच्छे से याद है कि वह यहीं गिरी थी ?” फ़क़ीर ने जवाब दिया “नहीं , गिरी तो वह झोपडी के अंदर थी |” यह सुनकर शिष्य बड़े हैरान हुए कि आप कैसी बातें करते है जब सुई गिरी अंदर थी तो आप बहार क्यूँ ढांड रहे है | इस पर फ़क़ीर ने कहा ” झोपडी में बहुत अँधेरा था बाहर थोड़ी रौशनी थी तो मैने सोचा कि चलो रौशनी में ही ढूंढा जाये |” शिष्योँ को लगा कि फ़क़ीर अब बूढ़ा हो गया है और उसके दिमाग पर उम्र का असर होने लगा है इसलिए ऐसी बहकी बहकी बातें कर रहा है | उन्होंने बूढ़े फ़क़ीर को समझाने की कोशिश की कि बाबा जो चीज़ जहाँ खोयी नहीं उसे वहां ढूंढ क्यूँ रहे हो | फ़क़ीर हसने लगा और अपने शिष्योँ से बोला “जब मैं अपनी झोपडी में गुम हुई सुई को बाहर की रौशनी में ढूंढ रहा हूँ तो तुम सब मुझे पागल समझ रहे हो और जब सारी दुनिया अपने भीतर की सम्पदा को सारी जिंदगी बाहर ढूंढ़ती है तब तुम्हे समझ नहीं आती |”
फ़क़ीर की इस बात में जीवन का रहस्य छुपा हुआ है सारा जीवन हम सुख और खुशियॉ की तलाश करते है प्रेमिका में, प्रेमी में, पति में, पत्नी में, बच्चों में, या फिर नशों में, धन में, सफलता में पता नहीं क्या क्या | पर खुशियां नहीं मिलती | पता है क्यूँ ? क्योँकि उस फ़क़ीर की तरह हम भी उसे वहां खोज रहे है जहाँ वो है ही नहीं | खुशियों को तलाशो अपने अंदर | अपने खोज की दिशा को अपनी तरफ मोड़ो | जब एक फूल खिलता है तो चारों तरफ उसकी खुशबू फैलती है अपने आस पास के माहौल को खुशनुमा बना देती है तो जब आपके अंदर भी खुशियोँ का फूल खिलेगा आपका चौगिर्दा अपने आप महक उठेगा |
खुद को सवारें | अपनी चेतना के सोये हुए आयामों को जगायें | महकें और अपने आस पास को भी महकाएं |